राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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आओ घूम कर आयें, हकीकत के हिन्दुस्तान में.
गांवो में भूखे-उजड़े, सत्तर प्रतिशत आवाम में.
सरसो के पीले चित्रो में, बस रवानगी दिखती है,
असल में हताश लाशें है, खेत और खलिहान में.
राहत जितनी पहुची है मोतिहारी जिले के बाढ़ में,
उससे ज्यादा अनाज चर गए, अफसर गोदाम में.
आपकी छिनैती विकास, भूख की लड़ाई नक्सल!
कई तहजीबें फ़ना हो गईं, कोयलो की खदान में.
फिरंग बनिए को रोकते हो, देसी दलालो के लिए,
आखिर लूट का माल भरा है, तुम्हारी भी दूकान में.
परदे के पीछे तुम भी चंगेज खान हो, बाबर हो,
तेरे राष्ट्र-वाद का डर बस गया है आम इन्सान में.
मूल्य किसानो को पूरा मिलेगा, लगान भी है माफ़,
इलेक्शन के बरस, ढिंढोरा पिटवाया है निजाम ने.
क्या उखाड़ लोगे किसान की बेबसी को पेंट कर!
बस उसे भी बेच डालोगे, मोनालिसा के दाम में.
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