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दिल के आँगन में

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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मै तो ये मानता हू की “Valentine” डे सब दोस्तों के प्यार को याद करने का दिन है, तो फिर किसी एक विशेष व्यक्ति को ही क्यों याद किया जाए; पेश है कालेज के दोस्तों या उन दोस्तों के लिए जो जीवन में कभी बहुत करीब रहे हो: (सन्दर्भ कोई दोस्त ऐसे ही रस्ते पर मिल जाये तो क्या ख़ुशी होगी)

दिल के आँगन में बरसो में आज चांदनी उतरी है.

उनके कदमो की चापो से राग-रागिनी छितरी है.


वही ठहाके कानो में गूंजा करते थे रह रह कर,

वही कसीदे-जुमले गुनते रहते थे हम हर पथ पर.


भूले मीतो के यादो से, रात बहुत ही अखरी है.

दिल के आँगन में………


कच्ची इमली की खातिर पत्थर खूब उछाले करना.

आमो की टहनी पे दिन भर झगडा कर झूले रहना.


यादो के गलियारो में बचपन की शरारत बिखरी हैं.

दिल के आँगन में………


गले लगाया, देर रात के चायो की भी चुस्की ली,

कक्षा के अध्यापक की भी नक़ल उतारी थोड़ी सी.


यारी की सारी बातो में यादें भूली बिसरी है.

दिल के आँगन में बरसो में आज चांदनी उतरी है.


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आज के दिन मुझे ऐसी बात नहीं लिखनी चाहिए, मगर बिना कदुए एहसास लिखे मेरी कलम रुकती ही नहीं है. कुछ लोग हमेशा प्रतिस्पर्धा में ही लगे रहते हैं, और मिलने के मज़े ख़राब कर देते हैं, जरा ये भी चार लाइन सुन लीजिये:

आये, बैठे, चाय पिए, फिर धंधे का गुणगान किये,

बाते जाने कहाँ-कहाँ की, बच्चे पर अभिमान किये.


उनकी बातो में केवल अब दुनिया-दारी बिखरी है.

दिल के आँगन में फिर से काली छाया पसरी है…..


सोचा था! दिल के आँगन में……….

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मगर आप लोग सिर्फ अच्छी लाइन ही याद रखना.

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