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मौसी का कुम्भ स्नान

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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हमारे बस्ती जिले में एक कहावत मशहूर है, माई मरे और मौसी जिए, इसका मतलब ये नहीं की माँ मर जाये, इसका मतलब ये है ये मौसी कभी कभी माँ से भी ज्यादा प्यार करती है बच्चो को, मै कुछ तुलना नहीं कर रहा हूँ, लेकिन मई भाग्यशाली था की मेरी मौसी मुझे बहुत प्यार करती थी बचपन में. उन्ही को याद करके एक बाल गीत लिखा है:

मेरी मौसी आती थी,
तिल के लड्डू लाती थी.

जमना-गंगा के घाटो के
चक्कर रोज लगाती थी.

माघ के मेले में जा कर के,
मन्नत कई मनाती थी.

इल्हाबादी अमरूदो को, वो-
नमक मिर्च से खाती थी.

तेल कटोरी में ले कर के,
सर मेरा सहलाती थी.

मेरे बचपन के सारे नखरे,
हंस-हंस खूब उठती थी.

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