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जश्न मानते रहो आजादी है

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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जश्न मानते रहो आजादी है
जश्न मानते रहो आजादी है
किसे-किसे खाना दे, पानी दे,
बड़ी आबादी है

कैसे बचाएं अपना वजूद,
हर रोड पर, हर ऑफिस में,
चौराहे या जेब में ‘गाँधी’ है!

ठण्ड और धूप में उगाया-
ऊख जला बैठा, सच है!
किसान बड़ा फसादी है.

खाली दीवारें है कमरे की,
सुकून वाली, “सोफ्ट कॉपी” में है,
बाकी सब में बर्बादी है.

ऐ झंडा फहराने वालो!
गिरेबान में झाको,
“मरा अभी-अभी गद्दफ्फी है”.

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