राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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मेरे झूठे बहानो पर, कभी तुम तंज करती हो,
कभी बेवजह बातो के लिए भी रंज करती हो,
गिले शिकवे सभी नाकामियाबी के, मेरे कंधे पे-
सर रख के बयान करती हो,
तभी लगता है की तुम,
मुझसे प्यार करती हो,
फेहरिस्त अपने तकाजो की मुझपे थोप देती हो,
खाली पर्स के लिए, फिर महगाई को दोष देती हो,
कयास कर फिर मेरे बेफिक्र चेहरे को, मेरी आंखो में –
अपने सपने डाल देती हो,
मुझे लगता है की तुम,
मुझसे प्यार करती हो,
नये पतझड़, नयी फागुन के मौसम आगे आएंगे,
नये वादे बयां होँगे, पुरानी कसमे भुलायेंगे,
मेरे इस फलसफे को बेतुका सा नाम देकर, जब-
बेतर्क तुम फटकार देती हो,
दिल को यकीं होता है,
मुझसे तुम प्यार करती हो.
मुझे लगता है……………………………….To you, who else 🙂
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