राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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आहो से भर उठा वितान, मीलो में था ये श्मशान. जहर की बेले, गई थी बोई, आज दिखाती ये अंजाम,माँ की गोदे हुयी है सूनी, सूनी पड़ी है दुल्हन मांग, 'रजिया' का यदि मरा है शौहर, 'राधा' के बच्चे गुमनाम.नेताओ के इरादो में तुम, कहाँ ढूँढते हो ईमान, वोटो की इस राजनीति ने, इन्हें बना रखा है गुलाम.फतहो या फिर नारो से क्या, अलग हो गई है पहचान! मिटटी की खातिर, मिटटी की, जान ले रहा है नादान.भेस बदल कर आते है सब, ले-ले 'गाँधी-जी' का नाम. सब ने ही है स्वांग रचा. 'मसीहाओ' से सावधान!वो कहते 'मेरे है अल्ला', ये कहते 'मेरे है राम'. लेकिन लहू तो 'इन्सां' का है, हिन्दू कहो या मुसलमान.दिल में ढूंढ़. वही पायेगा, भूखे को देकर के दान. गला काट के कैसे मानव!, ढूंढ़ रहा है तू भगवान्.कुछ भी सिद्ध नहीं होगा, ले कर के निर्बल की जान, झगड़े टंटो से क्या 'मूरख', हो जाते हैं प्रश्न निधान?मिल जुल कर करना होगा, पड़े प्रगति के काम तमाम. पहले से ही भारत पिछड़ा, और करो मत तुम बदनाम.यही बनाओ राम राज्य अब, यहीं तरक्की के अभियान, आजादी तुमको है पूरी, 'आज बचा लो ये गुलफाम'.
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