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सीधा लड़का

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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मेरे बचपन के मित्र के बड़े भैया पढ़ने में बड़े तेज़ थे, और पूरे मोहल्ले में अपनी आज्ञाकारिता और गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे. सभी माएं अपने बच्चो से कहती थी की कितना ‘सीधा लड़का’ है. माँ बाप की हर बात मानता है. वो हम लोगो से करीब 5 साल बड़े थे तो हमारे लिए उनका व्यक्तित्व एक मिसाल था, और जब भी हमारी बदमाशियो के कारण खिचाई होती थी तो उनका उदहारण सामने जरूर लाया जाता था. मेधावी तो थे ही, एक बार में ही रूरकी विश्वविद्यालय में इन्जिनेअरिंग में दाखिला मिल गया. वहा से पास होते ही नौकरी भी लग गई.

किन्तु उनके पिताजी को IAS से बड़ा ही सम्मोहन था और वो अपने लडके को किसी जिले का मालिक देखन चाहते थे. इसलिए उसे नौकरी से वापस बुला लिया और IAS का भी इम्तिहान देने को कहा. भैया इतने आज्ञाकारी थे कि नौकरी छोड़ के आ गए. उन्होंने फिर अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए IAS बन गए. अब क्या था! उनके पिताजी जी कि ख़ुशी का ठिकाना न था. हर जगह मिठाई बाटते फिरे. आखिर IAS का दहेज़ भी तो हमारे समाज में सबसे ज्यादा होता है.

दिन बीतते गए और तरह तरह के संपन्न रिश्ते आते रहे. किन्तु हमारे भैया किसी न किसी तरह से उसे मना कर देते थे. एक दिन मेरे मित्र के पिताजी सुबह सुबह ही चिल्ला रहे थे. थोड़ी देर बाद लोगो को पता चला की भैया अपनी ट्रेनिंग पूरी कर के आ गए है, और साथ में बहू और 3 साल का एक बच्चा भी लाये है.
जैसे तैसे चाचा जी को समझाया गया. बहू अच्छी थी उसने घर में सबको खुश रक्खा.

अब जब कभी भी हमारे मोहल्ले में कोई प्रेम प्रलाप होता है तो घर वाले उसका विरोध नहीं करते. बल्कि भैया वाली बात की उलाहना देते हैं और कहते हैं की जहाँ आप लोग की मर्जी शादी कर लेना मगर इस तरह अचानक से बहू और बच्चा ला के ‘हार्ट अटैक’ मत देना.

बहुत संपन्न होने के बाद भी चाचा जी को दहेज़ न मिल पाने की खलिश आज भी कभी कभी सताती है.

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राकेश त्रिपाठी ब्लोग्स

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