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मूंगफली: Peanutes

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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मेरा एक छोटा दोस्त है माहिम में. उसका घर धारावी में है, जो कि महिम से लगा हुआ एक बहुत बड़ा ‘स्लम’ है. ये वही जगह है जिसे हम बड़ी शान से कहते हैं कि एशिया का सबसे बड़ा ‘स्लम’ है. मेरा दोस्त आठवी क्लास में पढता है, और पिछले दो या तीन साल से धारावी से माहिम आता है. उसका स्कूल और मेरा ऑफिस लगा हुआ है, तो कभी कभी मिलते मिलते दोस्ती हो गई.

आज मुझे काफी दिन बाद मिला. उसके हाथ में छिलके वाली भुनी मूगफली का एक पैकेट था. उसने मेरी तरफ बढाया पर मैंने नहीं लिया सोचा की इतने छोटे पैकेट में से मैंने ले लिया तो वो क्या खायेगा. पर एक बात अजीब लगी. वो मूंगफली छिलके सहित खा रहा था. मैंने कहा बेटा पेट ख़राब हो जायेगा, छिलके सहित क्यों खा रहे हो?


वो बोला – “अंकल! मुझे आज से दो साल पहले पहले भी 5 रुपये स्कूल से लौटते वक्त कुछ खाने के लिए मिलते थे, और आज भी 5 रुपये. पहले इतनी मूंगफली आ जाती थी कि मै छिलके निकाल के खाते हुए घर तक पहुच जाता था. मगर अब आधे रस्ते में ही ख़तम हो जाती है. हाँ पर अगर मै छिलके सहित खाऊं तो पूरे रस्ते चलती है”.

इस उत्तर के बाद मै कुछ बोल नहीं पाया. वो तो निकल गया और मै ये सोच रहा था कि आज 5 रुपये में एक बच्चे को खाने भर को मूंगफली नहीं मिलती है, और हमारे नेता और सरकारी बाबू लोग गरीबी की रेखा 32 रुपये कर दिए हैं.


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