राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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आये हैं, मेरा दर, याद पूरा है, अमावस है और चाँद पूरा है.
जुल्फों से ढलकती हुई कुछ बूदें है, ओस के बीच अंगार पूरा है.
हया से पलकें झुकी जाती है, सवाल पूरा है, जवाब पूरा है.
माथे पे एक बिंदी है बस, दिल उजला है, श्रृंगार पूरा है.
बड़ी भोली शकल बनाये हैं, क़त्ल करने का विचार पूरा है.
कैसे न यकीन रक्खे उसपे, किया हर एक वादा पूरा है. .................................................................. To my wife Pallavi.
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