राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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लोग एअरपोर्ट जा रहे थे और वो घास काट रही थी, गोधुली बेला थी, "वीकेंड" की शाम थी.
जीर्ण शीर्ण सी धोती से सर को ढकी थी शेष जो था तन पे लिपटाये थी. सोचने लगा कि घर कहाँ है उसका? दूर तक कोई झोपड़ी न थी.
तभी एक आदम सा कद दिखा, साथ में एक कुत्ते की परछाई भी थी. कभी मालिक आगे तो कभी आदमी आगे, लगा कि साया व्यक्ति पर हावी थी.
दो घडी में एक कोलाहल सा हुआ, लगा की कुछ कहासुनी हुई
उस औरत के हाथ में "बर्गर" था- और आदमी कि चिल्लाये ही जा रहा - "इस औरत ने कुत्ते की रोटी चोरी की."
पर वो ढिठाई से एकदम अड़ी रही एक हाथ में "आधा बर्गर का टुकड़ा", एक हाथ में हसिया ली हुई.
इसी तमाशे में मेरी "कैब" आ गई, और मै भी एअरपोर्ट के लिए निकल पड़ा.
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