राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
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हो सबकी पूरी आशा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा हर पेट में हो रोटी, हर तन पर हो धोती, चिंता-तृष्णा हो छोटी, हो जाये शांत पिपासा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा कुछ आम का पेड़ लगायें कुछ दीन-बाल को पढ़ायें हम अपना कर्त्तव्य करें, हक बने न मात्र दिलासा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा खादी भी उजली हो जाये, संसद का रुके तमाशा निर्धन को संपन्न करें, न कि बदले परिभाषा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा बाँट सके न भारत को - फिर जाति धर्म या भाषा, मनुज मनुज की तरह मिले छटे दिलों से कुहासा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा हो सबकी पूरी आशा, नव वर्ष कि ये है अभिलाषा.
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